भारत की संत परम्परा में नाथ पंथ के प्रर्वतक महायोगी गोरखनाथ का प्रतिष्ठित स्थान है। भारत की आध्यात्मिक परम्परा में योग के क्रियात्मक रूप का जन-जन तक पहुँचाने का श्रेय महायोगी गुरु गोरखनाथ तथा नाथ योगियों को ही हैं। नाथपंथ के प्रर्वतक इय महायोगी को युग-प्रर्वतक सन्त माना जाता है। भारत में सामाजिक परिर्वतन के अग्रदूत महायोगी गोरखनाथ ने मानव तन-मन-मस्तिष्क और आत्मा की शुद्धि के साथ स्वास्थ्य एवं उपासना का अद्वितीय सूत्र मनुष्य को दिया। गुरु श्री गोरखनाथ द्वारा प्रवर्तित नाथपंथ लोक-कल्याण को समर्पित सेवा को ही साधना मानकर निष्काम कर्मयोग का पथ-प्रदर्शक है।
श्रीगोरखनाथ मन्दिर महायोगी श्री गोरखनाथ जी की तपःस्थली है। लोक मान्यता है कि श्रीगोरखनाथ मन्दिर एवं श्री गोरक्षपीठ के महन्त गुरु श्री गोरखनाथ जी के प्रतिनिधि हैं। युग-प्रर्वतक महायोगी गोरखनाथ की यह तपःस्थली युगानुकूल अपनी लोकमंगलकारी भूमिका का विस्तार करती रही है। आधुनिक युग में ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी महराज ने शिक्षा और चिकित्सा को सेवा का अंग बनाया। सन् 1932 ई. में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् की स्थापना इसी वैचारिक अधिष्ठान का सूत्रपात था। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक की शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाएं खडी करने वाले ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी महराज ने गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।
ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ जी महराज ने श्रीगोरक्षपीठ एवं श्रीगोरखनाथ मन्दिर की इसी यशस्वी परम्परा को आगे बढाते हुए ‘गुरू श्री गोरक्षनाथ चिकित्सालय समिति’ की स्थापना के साथ एलोपैथिक चिकित्सा के क्षेत्र में प्रभावी भूमिका की आधारशिला रखी। दिग्विजयनाथ आयुर्वेदिक कालेज, दिग्विजयनाथ आयुर्वेदिक चिकित्सालय की कड़ी में गुरु श्री गोरक्षनाथ चिकित्सालय की स्थापना पूर्वी उत्तर प्रदेश के चिकित्सा क्षेत्र में सेवा का एक महत्वपूर्ण कदम था।
महायोगी श्री गोरखनाथ और उनकी यशस्वी परम्परा के लोक कल्याण का अगला पड़ाव ‘महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय’ की स्थापना कर योग, आयुर्वेद, चिकित्सा-शिक्षा, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा सहित युगानुकूल रोजगारपरक पाठ्यक्रमों का संचालन कर समाज के लोकमंगल अभियान को आगे बढ़ाना है। अतः गुरू श्री गोरक्षनाथ चिकित्सालय समिति द्वारा प्रस्तावित ‘महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय-आरोग्यधाम’ के निम्न उद्देश्य होंगे-